Saturday, September 2, 2023

Prastavana Of Indian Constitution In Hindi | भारतीय संविधान की प्रस्तावना (उद्देशिका) | Preamble Of Indian Constitution

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Prastavana Of Indian Constitution In Hindi
भारतीय संविधान की प्रस्तावना (उद्देशिका)

Preamble, Samvidhan Ki Prastavana | भारतीय संविधान की प्रस्तावना (उद्देशिका)

संविधान की प्रस्तावना

हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्त्वसंपन्न (SOVEREIGN), समाजवादी (SOCIALIST), पंथनिरपेक्ष (SECULAR), लोकतंत्रात्मक गणराज्य (DEMOCRATIC REPUBLIC) बनाने के लिये तथा इसके समस्त नागरिकों को
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय;
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता
प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिये
 तथा उन सब में
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिये दृढ़ संकल्पित होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर, 1949 ई. को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

तथ्य-

1) मूल संविधान के अन्य पृष्ठों के साथ प्रस्तावना पृष्ठ को प्रसिद्ध चित्रकार ब्यौहर राममनोहर सिन्हा द्वारा डिजाइन और सजाया गया था जो जबलपुर (मध्य प्रदेश) के हैं।

2) प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा वह सुलेखक थे जिन्होंने भारत का संविधान अपने हाथों से लिखा था।

Who wrote Indian Constitution | भारतीय संविधान को किसने लिखा 

प्रस्तावना का महत्व(Importance of Preamble):-

  • दुनिया के इतिहास में पहली बार संयुक्त राज्य अमेरिका ने प्रस्तावना को अपनाया था उसके बाद दुनिया के कई अन्य देशों ने भी अपने संविधान में प्रस्तावना को शामिल किया।
  • प्रस्तावना संविधान का सार है।
  • भारत की प्रस्तावना भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत वस्तुनिष्ठ संकल्प पर आधारित है
  • प्रख्यात विधिवेत्ता और संवैधानिक विशेषज्ञ एन.ए.पालकीवाला ने प्रस्तावना को भारतीय संविधान का परिचय पत्र बताया है।
  • संविधान सभा के सदस्य पंडित ठाकुर दास भार्गव ने भारत की प्रस्तावना को संविधान का सबसे सम्मानित हिस्सा बताया है। उनके अनुसार प्रस्तावना भारतीय संविधान की आत्मा है। प्रस्तावना भारतीय संविधान की कुंजी है। यह भारतीय संविधान का आभूषण भी है। उनके अनुसार यही वह उचित स्थान है जहाँ से कोई भी व्यक्ति संविधान का मूल्यांकन कर सकता है।
  • अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर के अनुसार भारतीय संविधान की प्रस्तावना हमारे दीर्घकालिक सपनों का विचार है।
  • के.एम. मुंशी केअनुसार भारतीय संविधान की प्रस्तावना हमारे संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य का परिणाम है।
  • प्रख्यात अंग्रेजी राजनीति के राजनेता व,राजनीतिक प्रबुद्ध व्यक्ति अर्नेस्ट बेकर ने संविधान की प्रस्तावना लिखी है। उनका कहना है कि प्रस्तावना संविधान का मुख्य बिंदु है। उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक सिद्धांत के अपने प्रसिद्ध पुस्तक सिद्धांत में इसका उल्लेख किया है।
  • भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एम. हिदायतुल्ला का कहना है कि भारत की प्रस्तावना संयुक्त राज्य अमेरिका की स्वतंत्रता की घोषणा के बराबर है, लेकिन यह घोषणा से कहीं अधिक है। प्रस्तावना हमारे संविधान की आत्मा है जिसमें राजनीतिक समाज के तरीके का उल्लेख है।
भारत के संविधान की प्रस्तावना संक्षिप्त में परिचयात्मक भाग जो भारतीय संविधान के मार्गदर्शक उद्देश्य , सिद्धांत और दर्शन को निर्धारित करता है। भारत की प्रस्तावना संविधान के स्रोत के बारे में,भारतीय राज्यों की प्रकृति के बारे में , संविधान और इसके अंगीकरण की तारीख के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में इसके उद्देश्य को स्पष्ट और निर्धारित करती है। 

प्रस्तावना संविधान के परिचय अथवा भूमिका को कहते हैं भारतीय संविधान की प्रस्तावना पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा पेश किये गए "उद्देश्य प्रस्ताव" पर आधारित है।   

42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता जैसे शब्दों को प्रस्तावना में सम्मिलित किया गया।

संविधान के स्रोत(Source Of the Constitution):-

संविधान का स्रोत हम, भारत के लोग हैं

वाक्यांश "हम भारत के लोग(We the people of India)" भारतीय नागरिक को महत्व देते हैं कि संविधान लोगों द्वारा, लोगों के लिए और लोगों के लिए बनाया गया है।

यह रूसो द्वारा निर्धारित लोकप्रिय संप्रभुता की अवधारणा को भी महत्व देता है; सभी शक्तियां भारत के नागरिक से प्राप्त होती हैं और इस प्रकार राजनीतिक व्यवस्था और राजनीतिक प्रतिनिधि भारत के लोगों के प्रति जवाबदेह और जिम्मेदार होंगे।

भारतीय राज्यों की प्रकृति(Nature of Indian States):-

संप्रभु(Samprabhu) :-

भारत न तो अन्य देशों पर निर्भर है और न ही अन्य देशों का प्रभुत्व है। भारत आंतरिक और बाह्य रूप से संप्रभु है अर्थात भारत बाहरी रूप से किसी भी विदेशी देश के नियंत्रण और शक्ति से और आंतरिक रूप से मुक्त है;

इसकी एक स्वतंत्र सरकार है जो सीधे भारत के लोगों द्वारा चुनी जाती है और भारतीय लोगों के लिए जिम्मेदार और जवाबदेह होती है। सरकार लोक कल्याण के मद्देनजर नीति बनाता है।

कोई भी बाहरी शक्ति या देश भारत सरकार को कमांडेंट नहीं कर सकता है। एक संप्रभु राज्य के रूप में भारत विदेशी क्षेत्रों को अपना सकता है और अपने सीमा क्षेत्र के किसी भी हिस्से पर अपना दावा छोड़ सकता है।

समाजवादी(Samajwadi):-

भारत प्रकृति में समाजवादी था क्योंकि भारतीय संविधान के डीपीएसपी (राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत) में समाजवादी के लक्षण विरासत में मिले थे। समाजवाद शब्द आर्थिक दर्शन के लिए है जिसमें उत्पादन और वितरण राज्यों के स्वामित्व में हैं।

भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया है, जहां राज्य के अलावा निजी उत्पादन भी होगा। फलस्वरूप भारत का समाजवाद लोकतांत्रिक समाजवाद है न कि साम्यवाद समाजवाद। यह भारत के समाजवाद के लिए राज्यों पर आधारित है।

भारतीय समाजवाद मार्क्सवाद और गांधीवाद दोनों से मिला हुआ है जिसमें गांधीवाद के प्रति काफी झुकाव अधिक है।
1991 में एलपीजी सुधार (उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण) ने समाजवाद को और अधिक लचीला बना दिया है जो निजी क्षेत्र/खिलाड़ियों को संगत प्राथमिकता देता है। 42वें संशोधन 1976 द्वारा प्रस्तावना में समाजवादी शब्द जोड़ा गया।

धर्मनिरपेक्ष(Dhramnirpeksha):-

धर्मनिरपेक्षता की विशेषताएं जैसा कि प्रस्तावना में वर्णित है। इसका आशय है कि राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होगा। राज्य सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करेगा।

एस.आर. बोम्मई और अन्य बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी व्यक्तियों को अंतरात्मा की स्वतंत्रता और अपनी पसंद के धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का समान अधिकार होगा।

यद्यपि भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द का उल्लेख नहीं है, फिर भी धर्मनिरपेक्षता की विशेषताओं को देखा जा सकता है। इस संदर्भ में अनुच्छेद 25 से अनुच्छेद 28 जोड़ा गया है।

42वें संशोधन 1976 द्वारा प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता शब्द जोड़ा गया। इसके मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने 1976 में धर्मनिरपेक्षता पर भी जोर दिया है।

लोकतांत्रिक (Loktantrik) :-

जनतांत्रिक ,सत्ता की शक्ति के लिए अभिप्रेत है जो लोगों की इच्छा शक्ति को आकर्षित करती है। सरकार के मुखियाऔर सभी प्रतिनिधि जनता द्वारा चुने जाते हैं और उनके प्रति उत्तरदायी होते हैं।

लोकतंत्र केवल राजनीतिक के लिए नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक दोनों के लिए है। संविधान सभा में दिए गए अपने भाषण में बी.आर.अम्बेडकर ने जोर देकर कहा कि राजनीतिक लोकतंत्र तब तक मौजूद नहीं हो सकता जब तक कि सामाजिक लोकतंत्र उनके सार में न हो।

1997 सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार लोकतंत्र के मद्देनजर सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक न्याय की स्थापना को सुनिश्चित किया जाए।

गणतंत्र (Gantantra):-

एक राजशाही राज्य में राज्य के मुखिया को वंशानुगत आधार पर जीवन भर के लिए या जब तक वह सिंहासन से त्याग नहीं देता तब तक नियुक्त किया जाता है; उदाहरण के लिए ब्रिटेन में।

 जबकि एक लोकतांत्रिक गणराज्य में राज्य का मुखिया एक निश्चित कार्यकाल के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है। भारत के राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से एक चुनावी प्रणाली द्वारा पांच साल के कार्यकाल के लिए किया जाता है।

भारत के संबंध में गणतंत्र का दो सार हैं; पहला यह है कि राजनीतिक संप्रभुता राज्य के मुखिया के हाथ में केंद्रीकृत नहीं है बल्कि भारत के लोगों में विकेन्द्रीकृत है।

दूसरा विशेषाधिकार वर्ग का अभाव है, यानी सभी सार्वजनिक कार्यालय बिना किसी भेदभाव के सभी के लिए खुले हैं।

भारतीय राज्य के उद्देश्य(Objective Of Indian States)-

न्याय(Justice):- राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक

समानता(Equality):- हैसियत और अवसर की

स्वतंत्रता(Freedom):- विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और उपासना की

बंधुत्व(Brotherhood): - व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता (भाईचारे) को सुनिश्चित करना

स्वीकार करने की तिथि (date of adoption)-
संविधान को अंगीकार करने की तिथि 26 नवम्बर 1949 है, जो अनुच्छेद 26 नवम्बर 1949 को अस्तित्व में आए, वह अनुच्छेद 394 द्वारा दिए गए हैं।

1930 में इस उद्देश्य के लिए 26 जनवरी का फैसला किया गया था; भारतीय स्वतंत्रता की घोषणा (पूर्ण स्वराज) लाहौर अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा घोषित की गई थी।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना पर महत्वपूर्ण मामले ( Important Judgement on the Preamble of Indian Constitution)-

क) बेरुबारी बनाम राज्य संघ 1960 (Berubari Vs Union of states,1960)-

इस ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है इसलिए प्रस्तावना में कोई वास्तविक शक्ति नहीं है।

ख) गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य 1967(Golaknath Vs. State of Punjab,1967)-

इस मामले में भूमि कार्यकाल अधिनियम (land tenure act) को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी, यह दावा किया गया था कि नागरिकों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत संपत्ति के अधिकार के तहत मौलिक अधिकार प्राप्त है। 

ग) केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य 1973(Keshvananda Vs. State of Kerla,1973)-

सुप्रीम कोर्ट के इस बहुत प्रसिद्ध ऐतिहासिक फैसले में; अदालत ने जोर देकर कहा कि प्रस्तावना भारतीय संविधान का एक हिस्सा है।

घ)मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ 1980(Minerva Mills Vs. Union of India 1980)-

प्रस्तावना की सहायता से मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत के बीच संबंध स्थापित किया गया है। मूल रूप से यह मामला मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत के बीच सर्वोच्चता से संबंधित था। कोर्ट ने कहा है कि मौलिक अधिकारों और डीपीएसपी के बीच कोई श्रेष्ठता नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।

च) एलआईसी ऑफ इंडिया बनाम भारत संघ 1995(L.I.C. Vs. Indian Union 1995)-

 इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से फैसला सुनाया है कि प्रस्तावना भारतीय संविधान का आंतरिक हिस्सा है।

संविधान के एक भाग के रूप में प्रस्तावना (Preamble as a parts of the Constitution)-

संविधान के अन्य हिस्सों की तरह, संविधान सभा ने भी प्रस्तावना बनाई थी, लेकिन जबकि अन्य हिस्से पहले ही बन चुके थे। प्रस्तावना को सबसे अंत में भारतीय संविधान में शामिल किया गया था। 

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय के अनुसार 
"प्रस्तावना भारतीय संविधान का एक अभिन्न अंग है जो कि संविधान निर्माता के राय के अनुसार उल्लिखित है ।"
प्रस्तावना में संशोधन अनु. 368 के अंतर्गत किया जा सकता है ।

इस संदर्भ में निम्नलिखित दो तथ्य महत्वपूर्ण हैं-

प्रस्तावना न तो विधायिका की शक्ति का स्रोत है और न ही उसकी शक्तियों पर प्रतिबंध।

प्रस्तावना में संशोधन(Amendment in Preamble of India):-

प्रस्तावना में संशोधन का मामला सबसे पहले 1973 के केशवानंद भारती मामले में उठाया गया था, जिसके माध्यम से यह बताया गया था कि प्रस्तावना को अनुच्छेद 368 द्वारा संशोधित किया जा सकता है बशर्ते कि इसके मूल ढांचे में कोई बदलाव न हो।

इसके तहत 42वां संविधान संशोधन 1976 लागू किया गया, जिसके तहत प्रस्तावना में तीन अतिरिक्त शब्द जोड़े गए जो समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता थे।
इसलिए अभी तक प्रस्तावना में केवल एक बार ही संशोधन किया गया है

प्रस्तावना का वाद-विवाद सारांश -

संविधान सभा ने 17 अक्टूबर 1949 को प्रस्तावना पर बहस की। प्रस्तावना के इर्द-गिर्द बहस भारत के नाम और 'भगवान' और 'गांधी' को शामिल करने के इर्द-गिर्द घूमती रही।

एक सदस्य ने सभा से भारत का नाम बदलकर 'भारतीय समाजवादी गणराज्यों का संघ' करने का आग्रह किया, जो कि यूएसएसआर के समान है। सदस्य इस सुझाव से सहमत नहीं थे क्योंकि उन्हें लगा कि यह पहले से ही अपनाई गई संवैधानिक योजना के विरुद्ध होगा।

एक अन्य सदस्य ने 'ईश्वर के नाम पर' शामिल करने की मांग की। कई लोगों ने इस सुझाव का विरोध किया - यह नोट किया गया कि वोट पर 'भगवान' को रखना दुर्भाग्यपूर्ण था। एक सदस्य का मानना ​​​​था कि 'ईश्वर' को शामिल करना 'विश्वास की मजबूरी' होगा और विश्वास की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।

प्रस्तावना में गांधी का नाम शामिल करने का एक और प्रस्ताव रखा गया था। एक सदस्य पहले से अपनाए गए मसौदा लेखों से असंतुष्ट था क्योंकि उसे लगा कि भारतीय संविधान अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के मामलों और भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है। उन्होंने 'सड़े हुए संविधान' के साथ गांधी के किसी भी जुड़ाव का विरोध किया।

सदस्यों द्वारा पेश किए गए संशोधनों को अस्वीकार कर दिया गया। हालाँकि, यह विधानसभा की कार्यवाही के दुर्लभ उदाहरणों में से एक था जिसमें सदस्यों ने हाथ दिखाकर 'भगवान' को शामिल करने के प्रस्ताव पर मतदान किया। विधानसभा के पक्ष में 41 वोट पड़े और इसके खिलाफ 68 वोट पड़े।

अंततः मसौदा समिति द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावना को सभा ने स्वीकार किया।



 हेलो साथियों इस आर्टिकल  Prastavana Of Indian Constitution In Hindi | Preamble Of Indian Constitution के माध्यम से आप लोगों ने  भारतीय संविधान की प्रस्तावना (उद्देशिका) के बारे में पढ़ा और समझा। आशा करता हूँ की यह आर्टिकल आपके विषय सम्बन्धी ज्ञान में अभिवृद्धि करने और विविध प्रतियोगी परीक्षाओं में Preamble Of Indian Constitution के प्रश्नों को हल करने में महती भूमिका निभाएगा।

धन्यवाद

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